हम अक्सर लड़कों को बोलते हैं कि वह हम लड़कियों को समझते ही नहिं हैं जो शायद एक जगह पर काफी सही भी होता है पर कभी इस बात पर गौर किया हैं कि आख़िर क्यों लड़के हमें समझ नहिं पाते?नहिं ना? हमने दर-असल कभी यह जानने की कोशिश ही नहीं कि, की लड़के आखिर क्यों हमारी भावनाओं, हमारी स्थिति को समझ नहिं पाते।पर अगर हम कुछ पहलुओं पर गौर करें तो लड़कों को कभी यह बताया ही नहीं गया की ल़डकियों को क्या क्या और किन किन चीजों का सामना करना पड़ता है। उनके पूछें गये सवालों को बस यह कह कर टाल दीया जाता हैं की यह ल़डकियों कि बात हैं, तुम्हें समझने कि जरुरत नहिं हैं। जब हम लड़कों के सवालों को बस यह कह कर टाल देते हैं कि तुम्हें इन सब बातों को समझने की कोई जरूरत नहिं हैं। फिर हम उनसे यह कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि बाद में वह हमारी परेशानियों को समझे। जब उनके मन में जो सवाल आते हैं किi आखिर क्योँ उन्की दीदी पाँच दिन पेट पकड़ कर बैठी है आखिर क्यूँ वह रो रही है? जब वह मम्मी या दीदी से पूछते हैं कि हुआ क्या है? तब मम्मी या दीदी वहीं एक पुराना सा जवाब आता हैं की ल़डकियों कि बात है तुम्हें समझने कि जरुरत नहिं है। और जब कभी टीवी पर सेण्टीरि पैड के एड आते थे जिनमें खुन का रंग ब्लू दिखाया जाता था तब वह सवाल करते थे कि आखिर यह है क्या तब घर के लोग उन्हें सेण्टीरि पैड कि जगह कुछ और बताते थे कि यह काम की चीज़ नहिं है। और उनके मन में सवाल तब भी आते थे जब टीवी में आ रहे प्रचार में किसी लड़कि को यह दिखाते थे कि उसकी शादी बस इस वज़ह से नहिं हो रही है क्यूंकि वह लड़की काली हैं। उनके मन में यह बात दरअसल बचपन में ही बैठ जाती है कि अगर लड़की काली हैं तो लड़की अच्छी नहिं है और वह ऐसा सोचे भी क्यों ना? जब हम छोटे थे तब तो हमें लगता था कि टीवी में जो भी दिखाया जा रहा है वह सच है। अगर हम बोले कि मिडिया कि भी इस सोच में उतना ही हाथ है, जितना आज या पुराने ज़माने कि उन औरतों की होती थी जो ना लड़कों कि मन के सवालों के ज़वाबो को बताती थी। पर अगर हम मीडिया कि बात करें तो मीडिया ने महिलाओं को ऐसे दर्शाया है कि महिला सिर्फ घर के काम, बच्चे को संभालना इत्यादि ही करती थी। इसका एक बहुत ही अच्छा उदाहरण यह है कि आप किसी भी पुरानी या आप अभी के ही ज़माने में आ रहे प्रचार को देख ले जहां पर अगर कोई किचन का काम हैं, कोई पुरुष को उनमें दिखाया नहिं जाता है यह कहना बिल्कुल भी गलत नहिं होगा कि यह सोच बनाने में मीडिया का पूरा हाथ है कि महिलाएं सिर्फ घर के काम, बच्चों को संभालना इत्यादि ही करतीं हैं । यहाँ तक की उन्हें इस तरह से दिखाया जाता है कि महिलाओं को अक्सर एक हीरो यानि की एक नायक जो उनकी जिंदगी में आता है तभी उनकी जिंदगी आसान होती हैं,अन्यथा उन्की जिंदगी अच्छी नहिं होती है मीडिया ने महिलाओं को ऐसे दर्शाया है की महिलाओं को हमेशा आदमी पर निर्भर होना पड़ता है जो बच्चे बचपन से यह सब देखते आ रहे हैं कि महिला असल में ऐसी ही होती है तो आखिर गलती है किसकी? उन लड़कों कि जिनको उनके सवालों का कभी जवाब नहीं मिला जिन्होंने हमेशा से यहीं सोचा है कि महिलाएं उन पर निर्भर होती है, महिलाएं किचन मेँ ही होतीं हैं और यह उनका ही काम होता है। उन्होंने कभी देखा ही नहिं की महिलाएं किन-किन दिक्कतों का सामना करती है, किन-किन मुश्किलों से गुज़रती हैं। तो वह कैसे समझेंगे महिलाओं को?आखिर गलती किन कि हैं उन लड़कों कि जिनको कभी उनके सवालों का ज़वाब नहिं मिला या फ़िर मीडिया औऱ उन लोगोँ कि जिन्होंने उनके दिमाग़ मेँ यह बात डाली कि ल़डकियों का मामला है उन्हें समझने की कोई जरूरत नहिं है।

Written by

Supriya singh

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