जब आज मैं आज सुबह ऑफिस के लिये बस से आ रही थी तब मैंने कुछ कालेज के छात्रों को ट्रैवल डायरी के बारे में बात करते सुना कि कैसे कोई स्थान पर लोग घूमने जाते है कितना कुछ सीखते हैं तभी मेरे मन में एक सवाल उठा की आखिर क्यों केवल सुन्दर स्थानो के यात्रा को ही यात्रा कहा जाता हैं? बचपन से ही मैं अपने बड़े बुजुर्गों से यह सुनते आई हूँ कि जीवन जो हैं वह एक कठिन यात्रा है। तो क्यों ना मैं अपनें इस सुबह की शुरुआत जीवन के इसी कठिन यात्रा की बात करू।
अगर हम तुलना करें तो सही मायनों में स्थानो की यात्रा और जीवन की यात्रा में ज़्यादा कुछ फर्क़ नहीं है, मैं आपको बताती हूँ कैसे?जरा सोचिए जब हमे कहीं यात्रा पर जाना होता है तो सबसे पहले जो हम चुनते है वह है एक सुन्दर सी जगह वैसे ही ठीक हम मानव थोड़ी समझ आने के बाद चुनते है एक सुन्दर सा पेशा जहां हम जाना चाहते हैं पर जैसे हमे उस यात्रा में नहीं पता होता कि आगे क्या है, कौन कौन सी बाॅधाए है ठीक वैसे ही इस जीवन के सफर में हमे अपने आने वाले बाधाओं का कोई अंदाजा नहीं होता बस फर्क़ इतना होता है कि स्थानो की यात्रा एक सीमित अवधि के लिए होती है पर जीवन की यात्रा बस चलते ही जाती है जिसका रुकने का भी कोई ठिकाना नहीं होता दोनों ही यात्राओं के दौरान हमे कई उतार- चढाव ,चुनौतियों का सामना करते है पर जैसे हम स्थानों की यात्रा के लिए पहले से खुद को तैयार करते हैं जीवन के सफर में भी हर परिस्थिति के लिए हमें खुद को तैयार रखना होगा तभी हमारा स्थानों वाली यात्रा और जीवन की यात्रा अपनी तय मंजिल पर पहुंचेगी।
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